अनुभूति में अजय
तिवारी
की रचनाएँ—
गीतों में—
कैसे समझाएँ
खालीपन
जीवन - संध्या
धूप का टुकड़ा
सच्चाई
क्षण भर
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जीवन-संध्या
सूर्यास्त को देखो समझो,
जीवन बहुत अभी है
शेष।
लौट रहीं गइयाँ घर को
गोधूलि के मेघ बनातीं,
उत्फुल्लित और आनंदित
कैसे रंभा-रंभा बतियातीं।
कलरव करते पंछी आएँ
शामों को चहकाने,
है गहमागहमी का
परिवेश।
शैशव सुंदर सुप्रभात सा
यादें सुखद दिलाता,
यौवन थोड़ा निष्ठुर निकला
दोपहर सा तपाता।
खट्टी-मीठी, भली-बुरी
बातों में दिन बीते,
पर संध्या है
विशेष।
ढलते सूरज की लाली में
देह-दुर्ग है दमक रहा,
जर्जर-तन में छुपी विरासत
युग जीवन का चमक रहा।
अनुभवों का गढ़ विशाल था
थे अनमोल खजाने
बोलेंगे भविष्य में
भग्नावशेष।
१४ जुलाई २०१४
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