अनुभूति में रवीद्र भ्रमर
की रचनाएँ-
गीतों में-
आज का यह दिन
आँखों ने बस देखा भर था
चलो नदी के
साथ चलें
जूही
के फूल
यायावर |
|
यायावर
शब्द के भीतर रहे या शब्द के बाहर रहे
हम स्वयं की खोज में दिन-रात यायावर रहे।
नीड़ जो हमने रचा उसका अतुल विस्तार था
नेह जो हमने जिया वह विशद पारावार था।
हम रहे भू के पथिक या विहग थे आकाश के
भावना के मोतियों से भरे रत्नाकर रहे।
हम किसी अमिताभ छवि की साधना में खो गये
मन लगाया एक से? लेकिन सभी के हो गये।
तनिक अवसर मिला कब? पढ़ें पोथी ज्ञान की
हम समय के पृष्ठ पर अनुराग के आखर रहे।
रास की मुरली बजाई चंद्रिका के गाँव में
प्रीत की माला पिरोई रस कदम की छाँव में।
प्राण यमुना के पुलिन पर मोर बन नाचा किये
गोपिका इस छोर पर उस ओर नटनागर रहे।।
१ जून २००१ |