अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में रवीद्र भ्रमर की रचनाएँ-

गीतों में-
आज का यह दिन

आँखों ने बस देखा भर था
चलो नदी के साथ चलें
ूही के फूल
यायावर


 

  आँखों ने बस देखा भर था

आँखों ने बस देखा भर था
मन ने उसको छाप लिया।

रंग पंखुरी केसर टहनी नस-नस के सब ताने-बाने
उनमें कोमल फूल बना जो, भोली आँख उसे ही जाने
मन ने सौरभ के वातायन से--
असली रस भाँप लिया।
आँखों ने बस देखा भर था
मन ने उसको छाप लिया।

छवि की गरिमा से मंडित, उस तन की मानक ऊँचाई को
स्नेह-राग से उद्वेलित उस मन की विह्वल तरुणाई को
आँखों ने छूना भर चाहा
मन ने पूरा नाप लिया।
आँखों ने बस देखा भर था
मन ने उसको छाप लिया।

आँख पुजारी है, पूजा में भर अँजुरी नैवेद्य चढ़ाए
वेणी गूँथे, रचे महावर, आभूषण ले अंग सजाए
मन ने जीवन-मंदिर में-
उस प्रतिमा को ही थाप लिया।
आँखों ने बस देखा भर था
मन ने उसको छाप लिया।

१ जून २००१

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter