अनुभूति में
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गीतों में-
जाग री
ले चल वहाँ भुलावा देकर
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निर्वेद
संकलन में-
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मेरा भारत -
अरुण यह
मधुमय देश
प्रेमगीत-
तुम कनक किरन
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ले चल वहाँ भुलावा
देकर ले चल वहाँ भुलावा
देकर,
मेरे नाविक! धीरे धीरे।
जिस निर्जन मे सागर लहरी।
अम्बर के कानों में गहरी
निश्चल प्रेम-कथा कहती हो,
तज कोलाहल की अवनी रे।
जहाँ साँझ-सी जीवन छाया,
ढोले अपनी कोमल काया,
नील नयन से ढुलकाती हो
ताराओं की पाँत घनी रे ।
जिस गम्भीर मधुर छाया में
विश्व चित्र-पट चल माया में
विभुता विभु-सी पड़े दिखाई,
दुख सुख वाली सत्य बनी रे।
श्रम विश्राम क्षितिज वेला से
जहाँ सृजन करते मेला से
अमर जागरण उषा नयन से
बिखराती हो ज्योति घनी से! |