अनुभूति में
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गीतों में-
जाग री
ले चल वहाँ भुलावा देकर
हिमाद्रि तुंग शृंग से
निर्वेद
संकलन में-
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हरित किसलय
मेरा भारत -
अरुण यह
मधुमय देश
प्रेमगीत-
तुम कनक किरन
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जाग री
बीती विभावरी जाग री।
अंबर पनघट में डुबो रही-
तारा घट ऊषा नागरी।
खग कुल
कुल-कुल-सा बोल रहा,
किसलय का आँचल डोल रहा,
लो यह लतिका भी भर लाई -
मधु मुकुल
नवल रस गागरी।
अधरों में
राग अमंद पिये,
अलकों में मलयज बंद किये,
तू अबतक सोयी है आली-
आँखों में भरे
विहाग री।
९ जनवरी २००२ |