अनुभूति में
पं. माखनलाल चतुर्वेदी
की
रचनाएँ
गीतों में-
तुम मिले, प्राण में
पहचान तुम्हारी
मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक
ये प्रकाश ने
समय के समर्थ अश्व
अन्य छंदों में-
पुष्प की अभिलाषा
वर्षा ने आज विदाई ली
संकलन में-
वर्षामंगल -
कैसा छंद बना देती हैं
ज्योतिपर्व-
दीप से दीप जले
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ये प्रकाश ने
ये प्रकाश ने
फैलाये हैं पैर, देख कर खाली में
अन्धकार का अमित कोष भर आया
फैली व्याली में
खाली में
उनका निवास है, हँसते हैं, मुसकाता हूँ मैं
खाली में कितने खुलते हो, आँखें भर-भर लाता हूँ मैं
इतने निकट दीख पड़ते हो वन्दन के,
बह जाता हूँ मैं
संध्या को समझाता हूँ मैं, ऊषा में
अकुलाता हूँ मैं
चमकीले अंगूर
भर दिये दूर गगन की थाली में
ये प्रकाश ने फैलाये हैं पैर, देख कर खाली में
पत्र-पत्र पर,
पुष्प-पुष्प पर कैसे राज रहे हो तुम
नदियों की बहती धारा पर स्थिर कि विराज रहे हो तुम
चिड़ियाँ फुदकीं, कलियाँ चटकीं, फूल झरे हैं, हारे हैं
पर शाखाओं के आँचल भी भरे-भरे
हैं, प्यारे हैं
तुम कहते
हो यह मैंने शृंगार किया दीवाली में
ये प्रकाश ने फैलाये हैं पैर देख कर खाली में
चहल-पहल
हलचल का बल फल रहा अनोखी साँसों में
तुम कैसे निज को गढ़ते हो भोलेपन की आसों में
उनकी छवि, मेरे रवि जैसी, ऊग उठी विश्वासों में
कितने प्रलय फेरियाँ देते, उनके
नित्य विलासों में
यह ऊगन, यह
खिलन धन्य है माली! उस पामाली में
ये प्रकाश ने फैलाये हैं पैर देख कर खाली में |