अनुभूति में
पं. माखनलाल चतुर्वेदी
की
रचनाएँ
गीतों में-
तुम मिले, प्राण में
पहचान तुम्हारी
मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक
ये प्रकाश ने
समय के समर्थ अश्व
अन्य छंदों में-
पुष्प की अभिलाषा
वर्षा ने आज विदाई ली
संकलन में-
वर्षामंगल -
कैसा छंद बना देती हैं
ज्योतिपर्व-
दीप से दीप जले
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समय के समर्थ अश्व
समय के
समर्थ उश्व मान लो
आज बन्धु! चार पाँव ही चलो
समय के
समर्थ अश्व मान लो
आज बन्धु! चार पाँव ही चलो
छोड़ दो पहाड़ियाँ, उजाड़ियाँ
तुम उठो कि गाँव-गाँव ही चलो
रूप फूल का कि
रंग पत्र का
बढ़ चले कि धूप-छाँव ही चलो
आज बन्धु! चार पाँव ही चलो
वह खगोल
के निराश स्वप्न-सा
तीर आज आर-पार हो गया
आँधियों भरे अ-नाथ बोल तो
आज प्यार! क्यों उदार हो गया?
इस मनुष्य का
जरा मज़ा चखो
किन्तु यार एक दाँव ही चलो
आज बन्धु ! चार पाँव ही चलो। |