अनुभूति में
गोपाल सिंह नेपाली
की रचनाएँ-
गीतों में-
अपनेपन का मतवाला
बदनाम रहे
बटमार
मुसकुराती रही
कामना
मेरा धन है स्वाधीन कलम
सरिता
संकलन में-
मेरा भारत- यह दिया बुझे नहीं
प्रेम कविताएँ-
मैं प्यासा भृंग जनम भर का
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मुसकुराती रही
कामना
तुम जलाकर दिये, मुँह छुपाते
रहे, जगमगाती रही कल्पना
रात जाती रही, भोर आती रही, मुसकुराती रही कामना
चाँद घूँघट घटा का उठाता रहा
द्वार घर का पवन खटखटाता रहा
पास आते हुए तुम कहीं छुप गए
गीत हमको पपीहा रटाता रहा
तुम कहीं रह गये, हम कहीं रह
गए, गुनगुनाती रही वेदना
रात जाती रही, भोर आती रही, मुसकुराती रही कामना
तुम न आए, हमें ही बुलाना पड़ा
मंदिरों में सुबह-शाम जाना पड़ा
लाख बातें कहीं मूर्तियाँ चुप रहीं
बस तुम्हारे लिए सर झुकाता रहा
प्यार लेकिन वहाँ एकतरफ़ा रहा,
लौट आती रही प्रार्थना
रात जाती रही, भोर आती रही, मुसकुराती रही कामना
शाम को तुम सितारे सजाते चले
रात को मुँह सुबह का दिखाते चले
पर दिया प्यार का, काँपता रह गया
तुम बुझाते चले, हम जलाते चले
दुख यही है हमें तुम रहे सामने,
पर न होता रहा सामना
रात जाती रही, भोर आती रही, मुसकुराती रही कामना
16 जुलाई 2007
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