अनुभूति में
गोपाल सिंह नेपाली
की रचनाएँ-
गीतों में-
अपनेपन का मतवाला
बदनाम रहे
बटमार
मुसकुराती रही
कामना
मेरा धन है स्वाधीन कलम
सरिता
संकलन में-
मेरा भारत- यह दिया बुझे नहीं
प्रेम कविताएँ-
मैं प्यासा भृंग जनम भर का
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बदनाम रहे
बटमार
बदनाम रहे बटमार मगर, घर तो रखवालों ने लूटा
मेरी दुल्हन-सी रातों को, नौ लाख सितारों ने लूटा
दो दिन के रैन बसेरे की,
हर
चीज़ चुराई जाती है
दीपक तो अपना जलता है,
पर रात पराई होती है
गलियों से नैन चुरा लाए
तस्वीर किसी के मुखड़े की
रह गए खुले भर रात नयन, दिल तो दिलदारों नर लूटा
मेरी दुल्हन-सी रातों को, नौ लाख सितारों ने लूटा
शबनम-सा बचपन उतरा था,
तारों की
गुमसुम गलियों में
थी प्रीति-रीति की समझ नहीं,
तो प्यार मिला था छलियों से
बचपन का संग जब छूटा तो
नयनों से मिले सजल नयना
नादान नये दो नयनों को, नित नये बजारों
ने लूटा
मेरी दुल्हन-सी रातों को, नौ लाख सितारों ने लूटा
हर शाम गगन में चिपका दी,
तारों
के अक्षर की पाती
किसने लिक्खी, किसको लिक्खी,
देखी तो पढ़ी नहीं जाती
कहते हैं यह तो किस्मत है
धरती के रहनेवालों की
पर मेरी किस्मत को तो इन, ठंडे अंगारों ने लूटा
मेरी दुल्हन-सी रातों को, नौ लाख सितारों ने लूटा
अब जाना कितना अंतर है,
नज़रों
के झुकने-झुकने में
हो जाती है कितनी दूरी,
थोड़ा-सी रुकने-रुकने में
मुझ पर जग की जो नज़र झुकी
वह ढाल बनी मेरे आगे
मैंने जब नज़र झुकाई तो, फिर मुझे हज़ारों ने लूटा
मेरी दुल्हन-सी रातों को नौ लाख सितारों ने लूटा
16 जुलाई 2007
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