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गौरव ग्राम में-
असिधारा पथ

ओस बिंदु सम ढरके
प्राप्तव्य
फागुन
भिक्षा
मधुमय स्वप्न रंगीले
मन मीन
मेह की झड़ी लगी
सदा चाँदनी
साजन लेंगे जोग री
हम अनिकेतन
विप्लव गायन
हिंडोला

दोहों में-
सोलह दोहे

संकलन में-
वर्षा मंगल - घन गरजे

 

ओस-बिंदु सम ढरके

हम तो ओस-बिंदु सम ढरके
आए इस जड़ता में चेतन तरल रूप कुछ धर के!

क्या जाने किसने मनमानी कर हमको बरसाया
क्या जाने क्यों हमको इस भव-मरुथल में सरसाया
बाँध हमें जड़ता बंधन में किसने यों तरसाया
कौन खिलाड़ी हमको सीमा-बंधन दे हरषाया
किसका था आदेश कि उतरे हम नभ से झर-झरके?

आज वाष्प वन उड़ जाने की साध हिये उठ आई
मन पंछी ने पंख तौलने की रट आज लगाई
क्या इस अनाहूत ने आमंत्रण की ध्वनि सुन पाई
अथवा आज प्रयाण-काल की नव शंख-ध्वनि छाई

मन पंछी ने पंख तौलने की रट आज लगाई
क्या इस अनाहूत ने आमंत्रण की ध्वनि सुन पाई
अथवा आज प्रयाण-काल की नव शंख-ध्वनि छाई
लगता है मानो जागे हैं स्मरण आज नंबर के।

१ अगस्त २०००

 

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