अनुभूति में भगवती चरण वर्मा
की रचनाएँ-
कविताओं में-
देखो, सोचो, समझो
पतझड़ के पीले पत्तों ने
बस इतना--अब चलना होगा
संकोच-भार को सह न सका
गीतों में-
आज मानव का सुनहला प्रात
आज शाम है बहुत उदास
कल सहसा यह संदेश मिला
कुछ सुन लें कुछ अपनी कह लें
तुम अपनी हो, जग अपना है
तुम मृगनयनी
तुम सुधि बनकर
मैं कब से ढूँढ रहा हूँ
संकलन में -
प्रेम गीत- मानव
मेरा भारत-
मातृ भू
शत शत बार प्रणाम
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तुम सुधि बन-बनकर
तुम सुधि बन-बनकर बार-बार
क्यों कर जाती हो प्यार मुझे?
फिर विस्मृति बन तन्मयता का
दे जाती हो उपहार मुझे।
मैं करके पीड़ा को विलीन
पीड़ा में स्वयं विलीन हुआ
अब असह बन गया देवि,
तुम्हारी अनुकम्पा का भार मुझे।
माना वह केवल सपना था,
पर कितना सुन्दर सपना था
जब मैं अपना था, और सुमुखि
तुम अपनी थीं, जग अपना था।
जिसको समझा था प्यार, वही
अधिकार बना पागलपन का
अब मिटा रहा प्रतिपल,
तिल-तिल, मेरा निर्मित संसार मुझे।
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