अनुभूति में भगवती चरण वर्मा
की रचनाएँ-
कविताओं में-
देखो, सोचो, समझो
पतझड़ के पीले पत्तों ने
बस इतना--अब चलना होगा
संकोच-भार को सह न सका
गीतों में-
आज मानव का सुनहला प्रात
आज शाम है बहुत उदास
कल सहसा यह संदेश मिला
कुछ सुन लें कुछ अपनी कह लें
तुम अपनी हो, जग अपना है
तुम मृगनयनी
तुम सुधि बनकर
मैं कब से ढूँढ रहा हूँ
संकलन में -
प्रेम गीत- मानव
मेरा भारत-
मातृ भू
शत शत बार प्रणाम
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आज मानव का सुनहला प्रात
आज मानव का सुनहला प्रात है,
आज विस्मृत का मृदुल आघात है,
आज अलसित और मादकता-भरे,
सुखद सपनों से शिथिल यह गात है,
मानिनी हँसकर हृदय को खोल दो,
आज तो तुम प्यार से कुछ बोल दो।
आज सौरभ में भरा उच्छ्वास है,
आज कम्पित-भ्रमित-सा बातास है,
आज शतदल पर मुदित सा झूलता,
कर रहा अठखेलियाँ हिमहास है,
लाज की सीमा प्रिये, तुम तोड दो
आज मिल लो, मान करना छोड़ दो।
आज मधुकर कर रहा मधुपान है,
आज कलिका दे रही रसदान है,
आज बौरों पर विकल बौरी हुई,
कोकिला करती प्रणय का गान है,
यह हृदय की भेंट है, स्वीकार हो
आज यौवन का सुमुखि, अभिसार हो।
आज नयनों में भरा उत्साह है,
आज उर में एक पुलकित चाह है,
आज श्चासों में उमड़कर बह रहा,
प्रेम का स्वच्छन्द मुक्त प्रवाह है,
डूब जाएँ देवि, हम-तुम एक हो
आज मनसिज का प्रथम अभिषेक हो।
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