अनुभूति में
बलबीर सिंह 'रंग'
की रचनाएँ-
गीतों में
अभी निकटता बहुत दूर है
आया नहीं हूँ
जीवन में अरमानों का
तुम्हारे गीत गाना चाहता हूँ
पीछे जा रहा हूँ मैं
पूजा के गीत
बन गई आज कविता मेरी
मेरे जीवन के पतझड़ में
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पीछे जा रहा हूँ
मैं
जो गए आगे
उन्हीं से प्रेरणा लेकर
जो रहे पीछे
उन्हें नव चेतना देकर
रंग ऐसा हूँ सभी पर छा रहा हूँ
मैं
कौन कहता है कि पीछे जा रहा हूँ मैं
है किसी में दम
जो मेरा ग़म ग़लत
कर दे
मैं जगाऊँ राग कोई
साथ का स्वर दे
इस दुराशा में समय बहला रहा हूँ मैं
कौन कहता है कि पीछे जा रहा हूँ मैं
वह बढ़ेंगे क्या
जिन्हें रुकना नहीं आता
उच्चता पाकर जिन्हें
झुकना नहीं आता
जो नहीं समझे उन्हें समझा रहा हूँ मैं
कौन कहता है कि पीछे जा रहा हूँ मैं
२४ अप्रैल २००६ |