अनुभूति में
बलबीर सिंह 'रंग'
की रचनाएँ-
गीतों में
अभी निकटता बहुत दूर है
आया नहीं हूँ
जीवन में अरमानों का
तुम्हारे गीत गाना चाहता हूँ
पीछे जा रहा हूँ मैं
पूजा के गीत
बन गई आज कविता मेरी
मेरे जीवन के पतझड़ में
|
|
आया नहीं हूँ
न छेड़ो मुझे मैं सताया गया हूँ।
हँसाते-हँसाते
रूलाया गया हूँ।
सताए हुए को सताना बुरा है,
तृषित की तृषा को बढ़ाना बुरा है,
विफल याचना की अकर्मण्यता पर-
अभय-दान का मुस्कुराना बुरा है।
करूँ बात क्या दान या भीख की मैं,
संजोया नहीं हूँ, लुटाया गया हूँ।
न छेड़ो मुझे
न स्वीकार मुझको नियंत्रण किसी
का
अस्वीकार कब है निमंत्रण किसी का,
मुखर प्यार के मौन वातावरण में-
अखरता अनोखा समर्पण किसी का।
प्रकृति के पटल पर नियति तूलिका से,
अधूरा बना कर, मिटाया गया हूँ!
क्षितिज पर धरा व्योम से नित्य
मिलती,
सदा चाँदनी में चकोरी निकलती,
तिमिर यदि न आह्वान करता प्रभा का-
कभी रात भर दीप की लौ न जलती।
करो व्यंग्य मत व्यर्थ मेरे मिलन पर,
मैं आया नहीं हूँ, बुलाया गया हूँ।
२४ अप्रैल २००६ |