अनुभूति में
सुशील शर्मा की रचनाएँ-
नयी कुंडलियों में-
गुरु की कृपा अपार
गीतों में-
खिलखिलाती फूल सी
फूल खिलें जब
सूना पल
सूरज को आना होगा
है अकेलापन
कुंडलिया में-
मकर संक्रांति
दोहों में-
फूले फूल पलाश |
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गुरु की कृपा
अपार
१
सारे संशय दूर हों, गुरु की कृपा अपार
अवगुण सारे मेटते, शुद्ध करें व्यवहार।
शुद्ध करें व्यवहार, ज्ञान की ज्योति जलाते
गुरु ग्रंथन का सार, ईश से आप मिलाते।
हम अज्ञानी इंसान, आप सर्वस्व हमारे।
मैं हूँ शिष्य सुशील, हरो अवगुण मन सारे।
२
साधे गुरु के ही सधें, सारे बिगड़े काम।
कर गुरुवर की वंदना, ध्यान धरो गुरु नाम।
ध्यान धरो गुरु नाम, ग्रहण कर गुरु से गुरुता।
सतगुरु ज्ञान अनंत, दिलाते गुरु ही प्रभुता।
गुरु को नमन सुशील, करा दो दर्शन राधे।
धन्य आपका नाम, आप सब कारज साधे।
३
सीता अनुगामित चलीं, लक्ष्मण सँग रघुनाथ।
त्याग अवध के राज को, झुका चरण पितु माथ।
झुका चरण पितु माथ, रखी कुल की मर्यादा।
पिता वचन कर पूर्ण, चुना है जीवन सादा।
करता नमन सुशील, राम रस जो है पीता।
भव सागर हो पार, हृदय रख रघुवर सीता।
१ मई २०२४ |