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अनुभूति में रघुविन्द्र यादव की रचनाएँ-

कुंडलिया में-
पाती आई गाँव से

दोहों में-
जुगनू भी अब पूछते सूरज से औकात

डाल दिये वनराज ने, हिम्मत के हथियार

संकलन में-
नया साल-
पूरे हों अरमान
मातृभाषा के प्रति- जनभाषा हिंदी बने

 

  जुगनू भी अब पूछते सूरज से औकात

गड़बड़ मौसम से हुई, या माली से भूल
आँगन में उगने लगे, नागफनी के फूल

धन की खाति बेचता, आए दिन ईमान
गिरने की सीमा सभी, लाँघ गया इनसान

दो रोटी के वास्ते, मरता था जो रोज
मरने पर उसके हुआ, देशी घी का भोज

भ्रष्ट व्यवस्था ने किये, पैदा वो हालात
जुगनू अब भी पूछते, सूरज से औकात

हर कोई आजाद है, कैसा शिष्टाचार
पत्थर को ललकारते, शीशे के औजार

मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश
बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगें गणेश

कैसे होगी धर्म की, रामलला अब जीत
रावण के दरबार में, बजरंगी भयभीत

नया दौर रचने लगा, नए नए प्रतिमान
भाव कौड़ियों के बिके, मानव का ईमान

पाप और अन्याय पर, मौन रहे जो साध
वक्त लिखेगा एक दिन, उनका भी अपराध

भ्रष्ट व्यवस्था कर रही, सारे उल्टे काम
अन्न सड़े गोदाम में, भूखा मरे अवाम

झूठों के दरबार हैं, सच पर हैं इल्जाम
कैसे होगा न्याय अब बोलो मेरे राम

भीड़तंत्र को दे दिया लोकतंत्र का नाम
राज खड़ाऊँ कर रही, बदला कहाँ निजाम

जब से फैला देश में रिश्वत वाला रोग
अरबों में बिकने लगे, दो कौड़ी के लोग

४ अप्रैल २०११

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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