मातृभाषा
के प्रति
जनभाषा
हिंदी बने
बनी राज भाषा मगर, मिला नहीं सम्मान.
जनभाषा हिंदी बने, हो जाये कल्याण.
अपनी भाषा का नहीं, करते जो सम्मान.
तन से मानव हों भले, मन से वो हैवान.
अफसर, नेता हो गए, अंग्रेजी के दास.
हिंदी अब तक काटती, घर में भी वनवास.
अपने घर में है नहीं, जिस हिंदी का मान.
भाषा उसे भविष्य की, माने सकल जहां.
हिंदी का झंडा उठा, पहुंचे संसद लोग.
खुलकर फिर चलने लगा, अंग्रेजी का भोग.
अपनी भाषा, देश का, सदा करें सम्मान.
करें न भूले से कभी, औरों का अपमान.
रघुविन्द्र यादव
१२ सितंबर २०११ |
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