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अनुभूति में महेन्द्र प्रताप पांडेय 'नंद' के दोहे-

नए दोहे-
माता

दोहों में-
कवि मर्म
पिता

 

पिता

पिता नरोत्तम दिव्य है, देता जीवन दान।
सींचा निज गुण ज्ञान से, दे साधन सामान॥1॥

भूख सहन कर आप ही, भोजन दे प्रिय बाल।
सदा सनेह हिय मे रखे, कुशल रहे मम लाल॥2॥

बना मार्ग दर्शक सदा, रखता ऊँची चाह।
कष्ट सहित करता रहा, सरल बनाई राह॥3॥

जग, मग, ठग है कौन सा, कैसी कैसी रीति।
वही बताया पुत्र को, किसमें कितनी प्रीति॥4॥

माँग माँग लाया भले, कैसी कैसी भीख।
मगर लाल को स्नेह दे, देता अच्छी सीख॥5॥

संरक्षक बन जनक वह, करे मुक्त वह भीति।
जग का ज्ञानी बन सदा, करता रहता प्रीति॥6॥

नही भुलाया जा सका, पिता का पालन प्यार।
उनके हिय की पवित्रता, त्याग क्षमा आचार॥7॥

बिना जनक सुनसान जग, बिन उनके जग सून।
बिना पुष्प मधु शून्य जस, वैसे पुण्य प्रसून॥8॥

मिले जगत में पिता से, सबको नव आदर्श।
पुत्र दिव्य गुण प्राप्त हो, होवे पितु को हर्ष॥9॥

पिता वेद विधि ज्ञान निधि, रूचिकर अतिहि महान।
पथ दर्शक बहु गुणन का, देता सम्यक ज्ञान॥10॥

२ नवंबर २००९

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