अनुभूति में
चंद्रसेन विराट की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अब हथेली
अक्षरों की अर्चना
गजल हो गई
छंद की अवधारणा
मुक्तिकाएँ लिखें
दोहों में-
चाँदी का जूता
तुमको क्या देखा
मुक्तक में-
नाश को एक कहर
संकलन में-
मेरा भारत-
ये
देश हमारा
वंदन मेरे देश |
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अब हथेली
अब हथेली न पसारी जाए।
धार पर्वत से उतारी जाए।
अपनी जेबो में भरे जो पानी
उसकी गर्दन पे कटारी जाए।
अब वो माहौल बनाओ, चलके
प्यास तक जल की सवारी जाए
झूठ इतिहास लिखा था जिनने
भूल उनसे ही सुधारी जाए।।
कोई हस्ती हो गुनाहोंवाली
कटघरे बीच पुकारी जाए।
उनसे कह दो कि खिसक मंचों से
साथ बन्दर का मदारी जाए
तोड़ दो हाथ दुशासनवाले
द्रौपदी अब न उघारी जाए।।
२५ जून २०१२ |