अनुभूति में
अमन चाँदपुरी
की रचनाएँ-
नये दोहों में-
बचपन की वो मस्तियाँ
दोहों में-
ये कैसा इन्साफ
भक्ति
नीति अरु रीति
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बचपन की वो मस्तियाँ
बचपन की वो मस्तियाँ, बचपन के वो मित्र।
सबकुछ धूमिल यूँ हुआ, ज्यों कोई चलचित्र
प्रेम-विनय से जो मिले, वो समझें जागीर।
हक से कभी न माँगते, कुछ भी संत फकी
ज्यों ही मैंने देख ली, बच्चों की मुस्कान।
पल भर में गायब हुई, तन में भरी थकान
मंदिर मस्जिद चर्च में, जाना तू भी सीख
जाने कौन प्रसन्न हो, दे दे तुझको भीख
लख माटी की मूर्तियाँ, कह बैठे जगदीश
मूर्तिकार के हाथ ने, किसे बनाया ईश
कौन यहाँ जीवित बचा, राजा रंक फकीर
अमर यहाँ जो भी हुए, वो ही सच्चे वीर
तुलसी ने मानस रचा, दिखी राम की पीर
बीजक की हर पंक्ति में, जीवित हुआ कबीर
कपटी मानव का नहीं, निश्चित कोई भेष
लगा मुखौटा घूमते, क्या घर क्या परदेश
आँसू हर्ष विषाद में, होते एक समान
दोनों की होती मगर, अलग-अलग पहचान
ईश्वर की इच्छा बिना, पत्ता हिले न एक
जब होती उसकी कृपा, बनते काम अनेक
१ जुलाई २०१७ |