अनुभूति में
अमन चाँदपुरी
की रचनाएँ-
नये दोहों में-
बचपन की वो मस्तियाँ
दोहों में-
ये कैसा इन्साफ
भक्ति
नीति अरु रीति
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भक्ति नीति अरु रीति
भक्ति, नीति अरु रीति की, विमल त्रिवेणी होय।
कालजयी मानस सरिख, ग्रंथ न दूजा कोय।
इस झूठे संसार में, नहीं सत्य का मोल।
वानर क्या समझे रतन, है कितना अनमोल।
जिनको निज अपराध का, कभी न हो आभास।
उनका होता जगत में, पग-पग पर उपहास।
जंगल-जंगल फिर रहे, साधू-संत महान।
ईश्वर के दरबार के, मालिक क्यों शैतान।
जब से परदेशी हुए, दिखे न फिर इक बार।
होली-ईद वहीं मनी, वहीं बसा घर द्वार।
डूब गई सारी फसल, उबर सका न किसान।
बोझ तले दबकर अमन, निकल रही है जान।
निद्रा लें फुटपाथ पर, जो आवास विहीन।
चिर निद्रा देने उन्हें, आते कृपा-प्रवीण।
पथ तेरा खुद ही सखे, हो जाये आसान।
यदि अंतर की शक्ति की, तू कर ले पहचान।
निश्चित जीवन की दिशा, निश्चित अपनी चाल।
सदा मिलेंगे राह में, कठिनाई के जाल।
पावस की ऋतु आगई, शीतल बहे बयार।
धरती हरियाने लगी, चहक उठा संसार।
१५ दिसंबर २०१५ |