अनुभूति में
अमन चाँदपुरी
की रचनाएँ-
नये दोहों में-
बचपन की वो मस्तियाँ
दोहों में-
ये कैसा इन्साफ
भक्ति
नीति अरु रीति
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ये कैसा इन्साफ
हे! विधना तूने किया, ये कैसा इंसाफ
निर्दोषों को है सजा, पापी होते माफ
कैसे देखें बेटियाँ, बाहर का परिवेश।
घर में ही रहते हुए, हुआ पराया देश।
दोहे संत कबीर के, तन-मन लेय उतार।
मानस पढ़ ले तू सखे, भ़र जीवन उजियार
न्याय व्यवस्था पंगु है, जनता है बेहाल।
आम आदमी मर रहा, कैसा माया जाल।
छत पर छिटकी चाँदनी, फैला रही उजास।
जाग गई है आज फिर, पिया मिलन की आस।
अलियों-कलियों में हुई, कुछ ऐसी तकरार।
फूल सभी मुरझा गए, माली रहा निहार।
पावस की ऋतु आ गई, हर्षित हुए किसान।
प्रेम गीत गाते हुए, लगा रहे हैं धान।
बैठो यूँ न उदास तुम, मंजिल अब ना दूर।
यदि मन से तुम थक गए, तन भी होगा चूर।
बैठे-बैठे हो गया, फिर इक दिन बेकार।
पता न कब हो पायगा, प्रियतम का दीदार।
‘अमन’ करे प्रभु याचना, बैठा अपने द्वार।
प्रभु जी मैं तो कवि हुआ, करो शब्द स्वीकार।
तुलसी ने मानस रचा, दिखी राम की पीर।
बीजक की हर पंक्ति में, जीवित हुआ कबीर।
माँ के छोटे शब्द का, अर्थ बड़ा अनमोल।
कौन चुका पाया भला, ममता का है मोल।
३ अगस्त २०१५ |