अनुभूति में
डा. शैलजा सक्सेना की रचनाएँ-
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शिशु |
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शिशु
आँचल का नन्हा सा छोर,
पकड़ खींचता अपनी ओर।
इस नन्हें शिशु की मुठ्ठी में,
मेरे घर की सारी खुशियाँ।।
इसकी नींद में मेरी नींद,
इसके चैन में मेरा चैन,
इसके जागने से होती है,
चपल सलोनी सुंदर भोर,
इसके हँसने से हँसती हैं,
मेरे घर की सारी खुशियाँ।।
इस नन्हें शिशु की मुठ्ठी में,
मेरे घर की सारी खुशियाँ।।
इसके मुस्काने से भूलूँ,
घर के जितने बाकी काम,
इसकी किलकारी बन जाती,
रुनझुन रुनझुन मीठा शोर,
इसके होने से उपजी हैं
कितनी नई अनोखी खुशियाँ।।
इस नन्हें शिशु की मुठ्ठी में,
मेरे घर की सारी खुशियाँ।।
इसकी चमकीली आँखों में,
बनती मेरी पहचान नई,
माँ – माँ के लटपट बोलों में,
मिलते मुझको नाम कई,
अपना आप भुलाने में भी,
मिलती हैं क्या इतनी खुशियाँ?
इस नन्हें शिशु की मुठ्ठी में,
मेरे घर की सारी खुशियाँ।।
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