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अनुभूति में रेखा भाटिया की रचनाएँ —

छंदमुक्त में-
ईश्वर की खोज
जीवन का व्याकरण
ढूँढ रही हूँ एक बुद्ध
पुराने रिश्ते
मेंहदी रचे हाथ

 

पुराने रिश्ते

कभी चमकते थे महकते शान से
जिन्हें पहन -ओढ़ होता था ग़ुरूर
कुछ पुराने रिश्ते उतार फेंके हैं मैंने  
पुराने कपड़ों से तंग छोटे पड़ चुके
खींचते-खींचते उतरते मन पर
पहनते ही कहीं से उधड़ जाते
कहीं से तार खिंच जाते
कितना भी सी लेती,पेंच लगाती
तुरपाई, सिलाई ,कढ़ाई
पर पहले जैसी बात नहीं बन पाती

पड़े-पड़े मन के कोनों में घेर लेते जगह
पुराने कपड़े संदूक में पड़े रहते अर्थहीन
इनकी  देखभाल भी करनी पड़ती
धूप दिखाओ ,सीलन से बचाओ
अधिक पुराने पड़ते तो चूहे मुँह मारते
कीटनाशक छिड़कना पड़ता मन पर

न त्यौहार पर काम आएँ पुराने कपड़े
न मातम पुरसी में यह चटख बदरंगे पुराने
इन्हें फेंको लैंडफील्ड में फैलेगी बीमारी

दे आई हूँ इन पुराने बदरंगी रिश्तों को
परखे जाएँगे , काटे जाएँगे, फाड़े जाएँगे
बनाए जाएँगे इनसे पायदान फिर रख दूँगी
पायदान घर के द्वार पर ,उतार गंदगी
स्वस्थ पैरों से चलकर मन में कदम रखना।

१ मई २०२३

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