मेंहदी रचे हाथ
वह लौट कर मिले चौराहे पर
और ज़िंदगी मिली दोराहे पर
एक राह जाती उनकी तरफ
बची राहें तानों-बानों में उलझाती।
मेहँदी रचे हाथ थामते कैसे
चित्र कथाएँ मिट जातीं
कथाओं का नायक था कोई और
जिसका नाम हथेली पर लिखा था।
हाथों की रेखाएँ छिप गई थीं
मेहँदी की रंगा-पोती में
आज रचने की रात थी
छोड़ा सब रात की किस्मत पर।
औरत की किस्मत भी वैसी ही
सूरज भी आएगा चमकने
लेकिन रात गुज़रने के बाद...
१ मई २०२३
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