प्रतीक्षा
फिर एक बार
इन्तज़ार ख़त्म होने को है
तुम्हारी आहट मैं सुन रही हूँ।
मेरे सीने की धक-धक
और साँसों में
सुर भीग रहे हैं
तर हो रहीं हैं
मेरी आकांक्षाएँ
तुम्हारे आने की आहट से
सपने उड़ने लगे हैं-
सुनहरे पंख लगा कर
उमंग
अठखेलियाँ करती हुई
दौड़ रही है मेरे चारों ओर।
बस
अब इन्तज़ार ख़त्म होने को है।
तुम लौट आओ।
मेरे हर पल
तुम्हारी प्रतीक्षा में ही बीते हैं।
हर पल... आशा को संजोकर रखा है
वो जो कभी टूटती नहीं।
वो अब भी पास है मेरे।
तुम आओ तो सही
देख लेना फिर
१ मई २०२४ |