पहला प्यार
कभी सुबह मिले
कभी शाम मिले
घंटों-घंटों हम
दिन-रात मिले
न गले लगे, न हाथ छुआ
और दिल?
दिल कुछ इस तरह से चाक हुआ
कि तर्क़ दूँ मैं सारी कायनात
गर फिर से वो लम्हात मिलें
कभी हाट में
कभी पेड़ तले
हम साथ हँसे
हम साथ चले
लब पर आ-आ के रुकती बात रही
और दिल?
दिल ने दिल से दिल की न बात कही
मैं रख दूँ खोल के दिल अपना
गर कहने को फिर वो बात मिले
कभी धूप में
कभी छाँव में
हम घूम-घूम के
सारे गाँव में
हँसते-हँसाते थे चार सू
और दिल?
दिल में आज भी है उनकी आरज़ू
मैं मान लूँ हर एक बात को
गर लौट के फिर वो आज मिलें
१६ फरवरी २००९
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