मौसम
पतझड़ के पत्ते
जो ज़मीं पे गिरे हैं
चमकते दमकते
सुनहरे हैं
पत्ते जो पेड़ पर
अब भी लगे हैं
वो मेरे दोस्त,
सुन, हरे हैं
मौसम से सीखो
इसमें राज़ बड़ा है
जो जड़ से जुड़ा है
वो अब भी खड़ा है
रंग जिसने बदला
वो कूड़े में पड़ा है
घमंड से फ़ूला
घना कोहरा
सोचता है देगा
सूरज को हरा
हो जाता है भस्म
मिट जाता है खुद
सूरज की गर्मी से
हार जाता है युद्ध
मौसम से सीखो
इसमें राज़ बड़ा है
घमंड से भरा
जिसका घड़ा है
कुदरत ने उसे
तमाचा जड़ा है
१६ फरवरी २००९
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