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अनुभूति में राहुल उपाध्याय की रचनाएँ —

छंद मुक्त में-
मरते दम तक
मौसम
मिलन
कहर
पहला प्यार
किनारे किनारे

 

कहर

पहले भी बरसा था क़हर
अस्त-व्यस्त था सारा शहर
आज फ़िर बरसा है क़हर
अस्त-व्यस्त है सारा शहर

बदला किसी से लेने से
सज़ा किसी को देने से
मतलब नहीं निकलेगा
पत्थर नहीं पिघलेगा
जब तक है इधर और उधर
मेरा ज़हर तेरा ज़हर

बुरा है कौन, भला है कौन
सच की राह पर चला है कौन
मुक़म्मल नहीं है कोई भी
महफ़ूज़ नहीं है कोई भी
चाहे लगा हो नगर नगर
पहरा कड़ा आठों पहर

न कोई समझा है न समझेगा
व्यर्थ तर्क वितर्क में उलझेगा
झगड़ा नहीं एक दल का है
मसला नहीं आजकल का है
सदियाँ गई हैं गुज़र
हुई नहीं अभी तक सहर

नज़र जाती है जिधर
आँख जाती है सिहर
जो जितना ज़्यादा शूर है
वो उतना ज़्यादा क्रूर है
ताज है जिनके सर पर
ढाते हैं वो भी क़हर

आशा की किरण तब फूटेगी
सदियों की नींद तब टूटेगी
ताज़ा हवा फिर आएगी
दीवारे जब गिर जाएँगी
होगा जब घर एक घर
न तेरा घर न मेरा घर

१६ फरवरी २००९

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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