अनुभूति में
मीनू बिस्वास की रचनाएँ—
छंदमुक्त में—
आँचल की छाँव
क्या आँखें बोलती हैं
धुँधले अहसास
रिश्तों का ताना बाना
सृष्टि का
सृजन
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सृष्टि का
सृजन
कुछ अधखिली कलियों से पूछ रहा है
मुरझाया एक फूल
क्या तुम तैयार हो?
इस ज़ालिम दुनिया में
खिलने के लिए
सौभाग्य रहा तो
चढ़ा दिए जाओगे
ईश्वर के चरणों में
नहीं तो यों ही
मुरझा सूख जाओगे
इस डाली पे
विलुप्त अनगिनत लाशों की तरह
बेरहम कदमों तले
इन रास्तों पे
मसल दिए जाओगे
एक दिन मिट जायेगा
तुम्हारा भी वजूद
चुप चाप सुन रही थी
अधखिली कली
फिर चुपके से बोली
कैसे रोक पाएगी ये दुनिया
मेरी खुशबू को
जो निहित है मुझमें
खिलना तो मेरी नियति है
मेरे पराग में बसी है
सम्पूर्ण सृष्टि
२९ जून २०१५
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