अनुभूति में
मीनू बिस्वास की रचनाएँ—
छंदमुक्त में—
आँचल की छाँव
क्या आँखें बोलती हैं
धुँधले अहसास
रिश्तों का ताना बाना
सृष्टि का
सृजन
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रिश्तों
का ताना बना
रिश्तों की गहराईओं को नापते हुए
लगा जैसे एक सुरंग में घुसती जा रही हूँ
जहाँ उलझी हुई नुकीली तारों के सिवा कुछ नहीं
जिन्हें जितना ही सुलझाने की कोशिश करूँ
उसकी तेज नुकीली परतों से
अन्तरात्मा लहूलुहान होती जाती
कोई अंतिम सिरा नज़र नहीं आता
इन खोखले रिश्तों का ताना बना
उधड़े हुए ऊन की तरह
जिन्हें सीधा करने में लग जाती है सारी उम्र
रख छोड़ा है पलंग के गद्दे के नीचे
कि शायद ये सीधी हो जाए
फिर बना सकूँ
एक खूबसूरत सा रंगीन मफलर
जिसकी गरमाहट में
मिले एक शीतलता का एह्साह
जिसे भेंट में दे सकूँ
अपनी आने वाली पीड़ियों को
२९ जून २०१५ |