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अनुभूति में मीरा ठाकुर की रचनाएँ-

छंदमुक्त में-
आज भी लोग अच्छे हैं
थोड़ी सी रात
वरदान
हर चौराहे फूल खिले

हाइकु में-
दस हाइकु

संकलन में-
होली है-
संत वसंत

 

हर चौराहे फूल खिले

दिखती हो
जब चारों ओर
रेत ही रेत दूर तक
निर्जन टीलों पर
ऐसे में भी शहर बसे
और हर चौराहे फूल खिले
ज़िंदगी से जैसे हम फिर मिले
यूँ लगा मानो
खिली हुई हों छोटी-छोटी कलियाँ
जैसे हों हमारी अभिव्यक्तियाँ
कुछ कहना चाहती हों हमसे
कहती, करो इंतज़ार सही अवसर का
खिलो हमारी तरह
खिलखिलाओ हर वसंत में
भूलकर हर गम हर परेशानी
दो सभी को नई ज़िंदगानी

माना रेत में जीवन है अत्यल्प
फिर भी मन में अथाह उत्साह भरे
फूलों की क्यारियाँ
आशा की बाढ़ है
लोगों को देती हैं खुशियाँ अपार
बनाना है मेहनत का पारावार
रेत से फूलों वाली क्यारी में बदलना है
अपने जीवन का दर्द

इस बीहड़ में ये फूल
शहर को फूलने का उपहार देते हैं
सब कुछ भूलकर भी
हम सभी की आँखों को सौंदर्य देते हैं
बिना किसी स्वार्थ और आशा के
हम भी तो ऐसे जी सकते हैं।

११ जुलाई २०११

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