अनुभूति में
माया भारती की रचनाएँ—
छंदमुक्त में-
जिसको देखो वही दुखी है
वतन की याद
|
|
जिसको
देखो वही दुखी है
कोई घर में कोई बाहर
कोई धन के संचय से
कोई घर के आकार को लेकर
कोई अपने संघर्षों से
जिसको देखो वही दुखी है
जहाँ देखो वहीं दिखावा
जो जोड़ा था काम न आया
अपने को साहब कहलाएँ
सलूट नहीं करता है कोई
फिर भी अहंकार भरा है
खाना फेंक रहे बेदर्दी
देशवासी भूखे सोएँ हों
कहाँ धरेंगे शेखी अपनी
अपने मन के मिठ्ठू हम हैं
अपनों पर विश्वास बहुत है
ग़ैरों से कोई आस नहीं है
गर दुखिया का दर्द न समझा
तब सुख भी तेरा दास नहीं है
चाहे सोने लदी दुल्हनिया
मारुति वाला दूल्हा ललचाए
प्रेम नहीं तो सब माटी है
संतोष नहीं तो सब धन गोबर
समय की चक्की नहीं रुकी है
जिसको देखो वही दुखी है।
२४ अप्रैल २००६
|