अनुभूति में
मैट रीक की रचनाएँ-
छंदमुक्त में-
दिल्ली हाट पे
जो सफर मैंने किया
मेरी किताब |
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जो सफ़र मैंने किया
कहा जाए
कि आप की देखभाल
असफल थी।
मैं अपनी ज़िंदगी ले कर
चला गया।
मैं रातों रात
आप के लबों पर
एक ज़हर की बूँद टपका कर
चला गया, एक बूँद
जिससे आप नहीं मरेंगे
बल्कि मरते–मरते बच जाएँगे,
उठ कर मालूम करेंगे
कि मौत का भूत आप की रूह को
छू कर गुज़रा।
आप की देखभाल के बावजूद
मैं आप के मकान से भागा,
यों तो सब कुछ वहाँ था,
घास थी, खाना था,
सूरज था, दोस्त थे।
इन चीजों के बावजूद
मैं तारों के पास चला आया
जहाँ पर मैं रात भर
ठिठुरता तो हूँ,
जहाँ पर तारों के कोरे
चमकते–चमकते चेहरों
की संवेदना इतनी कम है
कि मुझे पहले से अधिक
तनहाई लगती है।
अभी मैं महसूस करता हूँ
कि आप की देखभाल
मुझे पीड़ा पहुँचाने के लिए नहीं थी
बल्कि मेरी संतुष्टि के लिए थी,
और जो गाड़ी
मैंने यहाँ आने के लिए पकड़ी थी
वह एक ही तरफ से जानेवाली गाड़ी थी।
अब मैं अच्छी तरह समझ गया हूँ,
यह राह भी बेचैनी की ही है।
१ सितंबर २००४ |