नौकुचिया ताल के छोर से
युगों के अंतराल पर
तुम लौटी हो
उद्वेलन के अभिशप्त क्षणों में
जब वाणी भयाक्रांत हो
अवरुद्ध हुई थी
नौकुचिया ताल के छोर से
गरजते मेघों के बीच
वे चिर परिचित डरावने लोग
तुम्हें मुझसे खींचकर दूर ले गए थे
वे मुझ पर बीती
क्रूरतम हिंसा के क्षण थे
तब से प्रतीक्षारत।
प्रतिदिन स्मृतियों के दीप जला
मैं युगों तक जिया
उस सामुद्रिक अंतराल के बाद
पुनः मुक्त हो
ताल से उसी छोर से
तुम लौटी हो
जहाँ से एक बिंदु बन
तुम लुप्त हुई थीं
१६ फरवरी २००५
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