हीथ्रो टर्मिनल थ्री
पिकैडिली लाइन हीथ्रो से
लंदन को जोड़ती है
हर साल हज़ारों चेहरे
इससे गुज़रकर
लंदन में समा जाते हैं
मैं एक चेहरा हूँ
जो हीथ्रो टर्मिनल थ्री
से निकलकर
प्रवासियों के सागर में
समा गया था
जब मैं आया था
इंटरनेट नहीं था
इंदिरा गांधी मारी जा चुकी थी
सोवियत संघ था
वक्त बुरा था
पर ये पागलपन नहीं था
बाबरी मस्जिद थी
स्टीफ़न लॉरेंस खुला घूमता था
ओस्टरली और हैमरस्मिथ के पार्क
स्वर्ग लगते थे
अब ऐसा नहीं है
सब कुछ बदल गया है
दो बार जिसे वोट दिया
वही टोनी ब्लेयर
ज़हर लगता है
अभिजातवर्गीय
ओस्टरली का इलाका
जिसका मैं दंभ भरता था
उसी के सबवे में
मेरी मगिंग हुई है
मेरे क्रेडिट कार्ड छिन गए हैं
मैंने रपट लिखाई है
पर जस्टिस मैक्फ़र्सन की
टिप्पणी मुझे याद आई है
ब्रितानी पुलिस की
धमनियों में नस्लवाद है
कुछ और समय गुज़र गया है
मेरा चेहरा बदल गया है
आइना अब अच्छा नहीं लगता
अपना परिवार
मुसाफ़िर लगता है
मनःस्थिति
विडंबनाओं से भर गई है
बड़े जतन से संवारा
लंदन का घर
पराया लगता है
भारत विदेश लगता है
प्रवास की मरीचिका सूख गई है
बस एक अंतर्द्वंद्व रह गया है
१६ फरवरी २००५
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