अनुभूति में
ललित
अहलूवालिया 'आतिश' की रचनाएँ—
गीतों में-
कामिनिया
चल कहीं और चलें
चलो रहने दो
दिल के आइने से
बात बनाए रखना
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चल
कहीं और चलें
आज यहाँ, कल वहाँ, ये कैसा फेरा रे रतन
चल कहीं और चलें
होता है जो, होने दे रे, ओ मेरे मन
चल कहीं और चलें
जहाँ हवाएँ मोड़-मोड़ पर फहर-फहर फहराती हों
डाल-डाल हर भोर चिरियाँ चिपर-चिपर बतियाती हों
जहाँ सुनहरी किरण मिलाये, नयन से नयन
चल कहीं और चलें
छपक-छपक छप मछली खेलें, लहर-लहर इतराती हो
पनघट पे पाज़ेब पहन पनिहारी पिया मन भाती हो
जहाँ चाँदनी रोज़ बिखेरे, चाँदी छन - छन
चल कहीं और चलें
मैया सी गैया छैया में बछड़ों को सहलाती हो
भैया से बैलों की जोड़ी सोना ढेर उगाती हो
द्वार-द्वार हर शाम जहाँ हो, जोगी के चरण
चल कहीं और चलें
कच्चे आम अँगोछा भर-भर लाएँ, छिपायें बुखारी पे
भाड़ भुने ले चने घने, चढ़-चढ़ कर खाएँ अटारी पे
तपती लू राज-घागर ओढ़े, करे सन्न-सन्न
चल कहीं और चलें
हर पल सोच पसीना पोंछा, पोंछा और निचोड़ दिया
क्यों ये झूठा मोह संजोया, मिला हुआ धन छोड़ दिया
बीता सच है या सपना, या उमर की थकन
चल कहीं और चलें
होता है जो, होने दे रे, ओ मेरे मन
चल कहीं और चलें
१० अक्तूबर २०११
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