अनुभूति में
दिव्या माथुर की रचनाएँ —
छंदमुक्त में-
कैसा यह सूखा
मैं ब्रह्मा हूँ
माँ
संकलन में-
वसंती हवा-
बसंत
बहार
भँवरा
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कैसा ये सूखा
सूखा, सूखा, कैसा ये
सूखा, सूखा, सूखा
जहाँ थी सरसों पीली–पीली, आज वहाँ कंकाल पड़े हैं
गिद्ध और चील के पेट भरे बस,
अन्य सभी को रोग है सूखा
कैसा ये सूखा
नभ की लंबी बेकारी से, पृथ्वी असमय वृद्ध हुई है
माँ लाचार और बाप व्यथित है,
भटक रहा है बच्चा भूखा
हाय ये सूखा
माँ ने रेत की खीर चटाके, घाल के चूना दूध पिलाके
बच्चों की यूँ भूख मिटाई,
कैसा बेचारी का भाग है फूटा
हाय ये सूखा
गऊओं के रखवाले कहाँ है, गोवर्धन को बचाले कहाँ है
आजा काल मिटाने आजा,
मार रहा है कंस सा सूखा
क्यों हमसे तू कृष्ण यूँ रूठा
यहाँ कहे से रूके ना बरखा, इकइक बूँद को तरस रहे वे
हम हर दम चरते हैं यहाँ और
वहाँ भूख से तड़प रहे वे
यहाँ बहुत है वहाँ क्यों सूखा
क्यों न उनकी भूख बाँट लें, मेघ बाँट लें, प्यास बाँट लें
आँसू, आहें, स्वप्न बाँट लें,
आओ चलें हम बाँट लें सूखा
रहे न सूखा
१ मार्च २००४
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