अनुभूति में
दर्शवीर संधु की रचनाएँ—
छंदमुक्त
में-
कर्म
घरौंदा
बातें
सफर
हक |
|
कर्म
कुछ तलवों पे
लकीरें नहीं होती
जन्मजात
उन्हें मिलते हैं,
सफ़र
कि वक़्त के तपते थल
पोरों में पिघल
नक्काशते रहें,
कण-कण किस्से
चिह्न दर चिह्न
किस्मतें
कहाँ मिलती हैं
सब को
लिखी लिखाई!!
२५ अगस्त २०१४ |