अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में चंद्रमोहन भंडारी की रचनाएँ-

आपकी तारीफ़
कहो मैं मेरा कैसे?
कैसा ज़माना आया यारो!
खुदाई
मेरे हिंदोस्ताँ, मेरे वतन

 

कहो मैं मेरा कैसे?

कहो मैं मेरा कैसे?
मैं आत्मा मेरा शरीर
मैं पुरुष मेरा प्रकृति
मैं दृष्टा मेरा दृश्य
मैं समाधिस्थ मेरा विचलित
कहो मैं मेरा कैसे?

मैं नित्य मेरा अनित्य
मैं सर्वत्र मेरा एकल
मैं सत्य मेरा माया
मैं शांत मेरा भरमाया
कहो मैं मेरा कैसे?

मैं निराकार मेरा आकार
मैं निर्विकार मेरा सविकार
मैं निर्विचार मेरा सविचार

मैं स्वयंप्रकाश मेरा 'मैं' से प्रकाश
कहो मैं मेरा कैसे?

मैं अविनाशी मेरा विनाशी
मैं अद्वैत मेरा द्वैत
मैं निर्गुण मेरा सगुण
मैं निर्विकल्प मेरा सविकल्प
कहो मैं मेरा कैसे?

16 अप्रैल 2007

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter