अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

अनुभूति में अर्चना पंडा की रचनाएँ—

हास्य व्यंग्य में—
अमरीका
कोई भारत से जब आए
नौकरी की टोकरी
वैलेंटाइन डे
शादी अच्छे घरों में हो

 

नौकरी की टोकरी

करी करी नौकरी नौ नौकरी करी,
मरी मरी मैं मरी जब भी नौकरी करी,
दे दे के झूठे वादे, हरजाई मुख मोड़ गई,
कभी मैंने छोड़ा उसे, वो ही कभी छोड़ गई,
ऊँची ऊँची डिग्रियों का क्या मैं अब अचार करूँ?
क्या बनेगा फ्यूचर मेरा अब इस पे मैं विचार करूँ।

आई जो मैं पढ़ लिख के बी.टेक.  एम.बी.ए. कर के,
पहुँची अमरीका कितने नयन में सपने धर के,
मेरा वो पहले इंटरव्यू, चक्रव्यूह की चोटी,
बिना वर्क परमिट के में उल्टे पाँव लौटी,
मेरा अपराध घोर था, स्टेटस मेरा एच फ़ोर था,

चार साल वनवास मैंने जैसे तैसे भोगा,
आया जो ग्रीन कार्ड मैं झूमी, अब कुछ होगा,
मैंने किए सारे तप, तब मिला एक स्टार्टअप,
मैंने कहा पैसे कम है, उसने कहा बस यही गम है?
अगर तुम में दम है, काम किए जाओ, हम हैं...

खैर, इरादा नेक था, मेरा वो पहले ब्रेक था,
मैंने की थी पूरी कोशिश दिन रात एक कर डारी,
अब किस्मत को मैं क्या रोऊँ जो पाँव हो गया भारी,

बस, फिर क्या था? फिर टूटी करीयर की डोरी,
बस गूंजी बच्चों की लोरी,
दिन-साल-महीने गुज़र गए अब कोई करो उपाय,
बच्चों के पालन के संग कौन नौकरी की जाए?

सब आर एंड डी कर कर के ये बात समझ है आई,
टीचर बन ने मैं ही अब तो होशियारी है भाई,
बच्चों के ही संग जाना है, उनके ही संग आना,
दो पैसे तो घर में आएँगे, हमने ख़ुद को ताना,
पर टीचर बन ने को जो हुआ हमारा हाल,
बज गए बाजा क्रेडेन्शियल्स में लग गए पूरे दो साल,
फिर मिली नौकरी पक्की, और चली समय की चक्की,

हुए बड़े कुछ बच्चे हाय, सॉफ्टवेयर फिर हमें बुलाए,
बस एक नौकरी के पीछे सब लगा दिया है दम,
लो आउटसोर्स का दानव फिर ले आया है मातम,
तंग आ गई मैं अमरीका में ए.बी.सी.डी बन कर,
मैं ही आया, मैं ही बैरा, मैं ही कुक और ड्राइवर,

उन बहनों के लिए ये संदेश मेरे पास है,
जिनके दिलों में भी परदेस की ही आस है,

जब आना इस ओर तो माँ या सासु माँ को ले आना,
देखो बहना, हो पाये तो एच फ़ोर पर मत आना,
रखना तुम कंट्रोल अपने फॅमिली के प्लानिंग पर,
वरना होगा रोना तुमको फूट फूट के धर के सर,

कविता नहीं है ये मेरे दिल की एक भडास है,
पर इन आँसुओं में भी कहीं छुपी एक आस है,

मैं हूँ नारी हिंद की और वक्त मेरा भी आएगा,
जो निकल पड़ी मैं सर चढ़ के
तो विश्व दंग रह जाएगा,
तुम गाँठ बाँध लो सारा जग मेरी वाणी दोहराएगा,
जिस किलकारी ने रोका था, अब वो ही हौसला बढाएगा!

१० नवंबर २००८

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter