अनुभूति में
अब्बास रज़ा अल्वी की रचनाएँ
छंदमुक्त में-
अपने शहर
की
फिर तेज़ हवा
का
अंजुमन में-
फ़सादो दर्द
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फ़सादो दर्द
फ़सादो दर्द और दहशत में जीना
मिला यह आदमी को आदमी से
बुरा कहते हैं हम क्यों क़िस्मतों को
बढ़ी हैं रंजिशे अपनी कमी से
वतन ऐसा जलाया बिजलियों ने
सहम जाते हैं अब हम रोशनी से
जहाँ गुज़रा था एक बचपन सुहाना
वो दर छूटा है कितनी बेदिली से
न जब कोई तुम्हारे पास होगा
बहुत पछताओगे मेरी कमी से
कभी तो यह हकीक़त मान लोगे
तुम्हें चाहा है मैंने सादगी से
हुईं सब ग़र्क वो ख्वाहिश 'रज़ा' की
सुनाऐं क्या तुम्हें अपनी खुशी से
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