अनुभूति में
अनूप भार्गव की रचनाएँ
मुक्तक में-
मुक्तक
छंदमुक्त में-
कविता बनी
रिश्ते
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कविता बनी
टूटते मूल्यों और विश्वासों की
शृंखला में
जब खुद की खुद से न बनी
कविता बनी।
कल्पना की उड़ान में, सपनों के जहान में
मिट्टी के घरोंदे बनाते जब उँगलियाँ सनी
कविता बनी।
फूलों से गंध चुरा तितली से रंग
अहसास के समंदर में सीपियाँ चुनी
कविता बनी।
कुछ कहा न सुना सिर्फ़ देखा किये
मूक थे होंठ फिर भी सुनी
कविता बनी।
बात मीठी कही, बात मन से कही
ढली शब्दों में जब चाशनी
कविता बनी।
सिर्फ़ अपनी नहीं, पीर जग की सही
पूरे युग की व्यथा शब्दों में जनी
कविता बनी।
२४ जुलाई २००५
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