मुट्ठी भर रेत
ये जीवन मानो -
मुट्ठी भर रेत
झरती हैं खुशियाँ झरते हैं सपने
इक पल हँसना तो दूजे पल क्लेश
ये जीवन मानो -मुट्ठी भर रेत
रेतघड़ी समय की चलती ही रहती
लम्हों की पूँजी हाथ से फिसलती
बस स्मृतियों के रह जाते अवशेष
ये जीवन मानों -
मुट्ठी भर रेत
किसी से हो मिलना किसी से बिछड़ना
जग के मेले में बंजारे सा फिरना
दुनिया आनी जानी- सत्य यह अशेष
ये जीवन मानों -
मुट्ठी भर रेत
१ मई २०२४
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