कपास के पौधे
कपास के ये नन्हें पौधे क्यारीदार
जैसे असंख्य लोग बैठ गए हों
अनुशासित क़तारों में हरी छतरियाँ खोल कर
पौधों को नहीं पता
उनके किसान ने कर ली है आत्महत्या
कोई नहीं आएगा उन्हें अगोरने
कोई नहीं ले जाएगा खलिहान तक
सोच रहे हैं पौधे
उनसे निकलेगी धूप-सी रुई
धुनी जाएगी
बनेगी बच्चों का झबला
नौगज़िया धोती
पौधे नहीं जानते
बुनकर ने भी कर ली है खुदकुशी अबके बरस।
क्वांर-कार्तिक की बदरियाई धूप
में
बढ़े जा रहे हैं कपास के पौधे
जैसे बेटी बिन माँ-बाप की।
२९
मार्च २०१०
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