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गुजारिश
नहीं चाहिए हमें दो
रुपए किलो गेहूँ
एक रुपए किलो चावल।
कितना भी हो जाए अनाज
सस्ता- हमारे लिए,
खरीदने के लिए इन्हें भी
पैसे तो चाहिए ही!
इन पैसों को पाने के लिए
हमें काम चाहिए काम!
ये सस्ते अनाज- लगती है हमें भीख!
मरता है हमारा जमीर!!
खुद को मारने के लिए
अपनी उँगली को दागदार बनाकर
तुम्हें अपनी उम्मीदों का फल तो नहीं दिया था न!
हमने यह तो नहीं कहा था कि
हम पर होओ मेहरबान
इस कदर कि
अपना ही वज़ूद लगने लगे भिखारियों सा।
दे दो हमारे हाथों में ताकत,
हम लौटा देंगे वह सब कुछ-तुम्हें,
उससे भी सस्ते भाव में,
फिर ना कहना कि हम बने नहीं हैं
भीख के लिए।
हम चाहते थे
सँवारना अपने सपनों की पथरीली राह
पर बना दिए गए हम राह के भिखारी!
रुपए-दो रुपए पर दागदार होती उँगलियाँ,
यह कौन सी मर्ज़ी है तुम्हारी?
३१ मार्च २०१४ |