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अनुभूति में वशिनी शर्मा की रचनाएँ

छंदमुक्त में-
अब क्या सोचना
क्या हूँ मैं
प्यार बस प्यार है
ये कैसा नारी विमर्श
शिला का अहिल्या होना

 

प्यार बस प्यार है

भले ही
मुट्ठी में से प्यार
रेत की तरह छीज जाता हो
फूलों की गंध–सा बस कर
हवा में
तैर उड़ जाता हो
सुबह की लाली–सा चमक
शाम का धुँधलका बन जाता हो
हमकदम
हमराह
साथ चलते चलते
हाथ छुड़ा कर गुम हो जाता हो
दिल में हज़ारों ख्वाहिशें जगा कर
एक तल्ख
वीरानी बन जाता हो
फिर भी प्यार तो बस प्यार है
महकता रहता है
हर ओर फूलों-सा
सदा से सदा के लिए, सदियों तक

६ मई २०१३

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