|
प्रणयगीत
घने वृक्ष की टहनी पर
बैठी हुई चिर परिचित कोयल
न जाने क्यों?
प्रणय गीत से रूठी
विकल मन से कूकी
टहनी छोड़ आ मेरे पास
स्नेह सिक्तमृदुल-कर से सहला दूँ
गात सूनेपन में उल्लास भर दूँ
अभिपुष्प अनुराग से सजीव कर दूँ
फिर तुम नभ में उड़ जाना
नभ का मन झंकृत कर
नभ की चुप्पी तोड़ो फिर
नभ सरसाए, अनुराग बूँद बरसाए
तुम टहनी पर बैठी रहना
भीगी-भीगी सी हर्षित होकर
तुम प्रणय गीत गाना
मेरा मन हर्षाना
मुझे प्रणय गीत सीखना है
अभिलाष तुम्हारे स्वर से स्वर मिलाकर
मैं भी प्रणय गीत गाऊँ!
१३ जुलाई २०१५
|