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अनुभूति में त्रिलोकीनाथ टंडन की रचनाएँ -

छंदमुक्त में-
आत्मा
निजी स्वार्थ
प्रणय गीत
मेरा परिचय
वैरागी मन
 

 

आत्मा

मेरी आत्मा
गुरु बन बैठी
जब-जब चलूँगी टेढ़ी चाल
निर्मम छड़ी लगाए यह
बेहाल यथार्थ ज्ञान के
चक्कर में फँसकर
मन की अवस्था रही बदल
अतेज होकर
भ्रष्ट की ओर प्रस्थान करूँगी
तब-तब रोकेगी
हो गई है अब गुरु की पहचान
जो कर रही है
अत्यानंद के लिए दुरूस्त
और बुद्धि का विकास
सच्चे गुरु की खोज
हुई अब समाप्त
क्योंकि मेरी आत्मा
गुरु बन बैठी!

१३ जुलाई २०१५

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