अनुभूति में
सुरेन्द्र प्रताप सिंह की
रचनाएँ -
छंद मुक्त में-
खामोश हो जाता हूँ मैं
ज़िंदगी कविता या कवयित्री
पत्थर
ये सिमटते दायरे
विचार
श्रद्धा
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पत्थर
दिल नहीं सीने में
हम तो पत्थर लिए फिरते हैं
कोई क्या जाने कि
सीने में तो पत्थर भी धड़कता है
हमेशा तो नहीं,
पर कभी तो मचलता है,
कुछ पाने की कामना करता है
किसी की याद में तड़पता है
फर्क सिर्फ इतना है कि
दिल तो ग़म और ख़ुशी का
इज़हार कर लेता है, पर
पत्थर तो फिर पत्थर है
हमेशा कठोर दिखाई देता है
वो क्या करे, क्या कहे ?
उसका मौन फिर भी
मानो कहता है,
लोगों, सिर्फ अपनी ही चोट का
ख्याल मत करो, क्योंकि
ठोकर जिसे लगती है
दर्द उसे ही नहीं
पत्थर को भी होता है
३ मई २०१०
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